मैं अक्सर समय हमेशा याद रखता था अपने पिता का संघर्ष, IAS शुभम कुमार ने कहा था UPSC में सफलता का राज

एक आईएएस अधिकारी हैं और उनसे आज लाखों युवा प्रेरणा लेते हैं। आपको बता दें कि वर्षों मेहनत के बाद शुभम कुमार ने इच्छा में सफलता प्राप्त की है और उत्तर में सफलता प्राप्त करने के बाद बिहार ही नहीं बल्कि पूरे भारत के लोग शुभम कुमार से प्रेरणा लेते हैं।
शुभम कुमार ने अपने सबके सामने के दौरान सभी जन ने लोगों से शेयर किया और बताया कि कैसे वह 5 साल तक आईएएस अधिकारी बनने के लिए सड़क से दूर रहें। शुभम ने बताया कि मैं हमेशा अपने पिता का सपना पूरा करना चाहता था यही कारण था कि मैं कभी भी मेहनत से नहीं भागा।
कई बार मेरी हार हुई थी। लेकिन माता-पिता और भाई के सहयोग से ही ऐसा पाया गया है। मैं सिर्फ 7-8 घंटे पढ़ाई करता था। पिछली बार मेरा चयन भारतीय रक्षात्मक प्रतिक्रिया सेवा में हो गया था। लेकिन मैं आईएएस बनना चाहता था। इसलिए मैंने तीन बार रोजगार दिया। शुभम पहली बार असफल रहे, दूसरी बार 290 रैंक आई और तीसरी कोशिश में नंबर एक रैंक आई। शुभम का घर कटिहार के कदवा प्रखंड के कुम्हारी गांव में है।
शुभम ने बताया था कि साल 2018 में तपसी की तैयारी शुरू की। इस दौरान काफी बढ़ा-चढ़ाकर भी देखने को मिला। हालांकि, उन्होंने अपना ध्यान केंद्रित किया और जितना संभव हो उतना प्रयास किया। कोरोना में काफी मुश्किल दौर था, लेकिन मोटिवेशन था कि तैयारी कर रहा है। उन्हें घर से काफी सपोर्ट मिला। इसके कारण मुझे ये अस्सी मिल सकीं। शुभम के पिता देवानंद सिंह ने बताया कि वह शुरू से ही काफी टैलेंटेड थे। शुभम के पिता ने बताया कि पढ़ाई के प्रति लगन देखकर उन्होंने हर मुमकिन कोशिश की कि उनकी पढ़ाई में कोई कमी ना रहे।
शुभम ने जब परीक्षा स्पष्ट की तो वे भारतीय रक्षात्मक उत्तरदायित्व सेवा में सीख रहे थे। पूर्णिया के बाद कटिहार और फिर पुरते में पढ़ाई करने वाले शुभम ने बोकारो से 12वीं की। फिर बॉम्बे वर्किंग से सिविल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन की है। उन्होंने बताया कि जब वो 6वीं क्लास में थे तभी पढ़ाई के दौरान एक घटना घटी, जिसके बाद उन्होंने पुणे से पढ़ाई का फैसला लिया।
दरअसल, हुआ ये कि कटिहार में जब वो 6वीं क्लास में थे तो उनके एक जवाब को उनके टीचर ने गलत कह दिया। शुभम के मुताबिक, उनका जवाब सही लग रहा था, बावजूद इसके शिक्षक के गलत आरोप देने से बेहद आहत हुए। फिर उन्होंने स्कूल बदलने का फैसला लिया। यही नहीं उन्होंने पुतना का रुख किया और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।